
आहत भाग 169 169 दीपेन्द्र कहता है कि मैं भी तो एक जीती जागती रूह ही हू मैं रूह से नहीं डरता वे किसी को बिना कारण नुकसान नहीं पहुंचाया करती मैं कहता हू की तुम चले जाओ वर्ना यहाँ कैद होकर रह जाओगे कभी मुक्ति नहीं मिल पाएगी ना मरने के बाद न जीते […]
आहत भाग 169
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